हरियाली तीज क्यो मनाई जाती है? पर्व की परंपरा और महत्व

हरियाली तीज, जो हर साल सावन के महीने में मनाई जाती है, भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह विशेष रूप से उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य नारी शक्ति का सम्मान करना और पारंपरिक मूल्यों को संजोना है। तो आइए जानें कि हरियाली तीज क्यो मनाई जाती है।

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हरियाली तीज कब मनाई जाती है?

हरियाली तीज हर साल श्रावण मास (सावन) के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह आमतौर पर जुलाई या अगस्त के महीने में आता है, जब मॉनसून का मौसम अपने चरम पर होता है और चारों ओर हरियाली छा जाती है। इस दिन महिलाएं विशेष व्रत रखती हैं और भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं।

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हरियाली तीज का महत्व

हरियाली तीज का नाम खुद में ही इसका महत्व बताता है। ‘हरियाली’ का अर्थ है हरी-भरी प्रकृति और ‘तीज’ का मतलब है तीसरा दिन। यह त्योहार प्रकृति की हरियाली और मॉनसून के आगमन का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और परिवार की समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।

पौराणिक कथा

हरियाली तीज की पौराणिक कथा भगवान शिव और देवी पार्वती से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इस दिन को भगवान शिव और देवी पार्वती के मिलन के रूप में मनाया जाता है, जो पति-पत्नी के अटूट बंधन का प्रतीक है।

हरियाली तीज की रीति-रिवाज और परंपराएं

  1. व्रत और पूजा: विवाहित महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं।
  2. सजना-संवरना: महिलाएं इस दिन नई साड़ी, आभूषण और मेंहदी से सजती हैं। यह श्रृंगार उनके वैवाहिक जीवन में खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
  3. झूला झूलना: हरियाली तीज पर झूला झूलने की परंपरा भी है। इसे प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने और मन को प्रफुल्लित करने का एक तरीका माना जाता है।
  4. गीत और नृत्य: इस दिन महिलाएं पारंपरिक गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं। यह संस्कृति और परंपरा का एक अद्भुत संगम होता है।

हरियाली तीज का समाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

हरियाली तीज समाज में महिला सशक्तिकरण और पारिवारिक बंधन को मजबूत करने का एक जरिया है। यह त्योहार महिलाओं को एकजुट करता है और उन्हें अपनी संस्कृति और परंपराओं के प्रति गर्व महसूस कराता है। इसके साथ ही, यह दिन प्रकृति से जुड़ने और उसके संरक्षण का संदेश भी देता है।

निष्कर्ष

हरियाली तीज न केवल एक धार्मिक त्योहार है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और महिलाओं के सम्मान का दिन भी है। इस त्योहार के माध्यम से हम अपने जीवन में हरियाली और खुशियों को आमंत्रित करते हैं। तो इस हरियाली तीज, आइए हम सभी मिलकर इस परंपरा को संजोएं और इसे हर्षोल्लास के साथ मनाएं।

FAQs

हरियाली तीज के दिन कौन से व्रत और पूजा की जाती है?

हरियाली तीज के दिन महिलाएं निम्नलिखित व्रत और पूजा करती हैं:

व्रत

  1. निर्जला व्रत: हरियाली तीज पर महिलाएं दिन भर का निर्जला (बिना जल के) व्रत रखती हैं। यह व्रत पति की लंबी उम्र और परिवार की समृद्धि के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने वाली महिलाएं पूरे दिन कुछ भी नहीं खाती-पीती हैं।

पूजा

  1. भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा: इस दिन महिलाएं भगवान शिव और देवी पार्वती की मूर्ति या चित्र के सामने पूजा करती हैं। पूजा में विशेष रूप से बेलपत्र, धतूरा, शहद, और गाय का दूध चढ़ाया जाता है। महिलाएं चंदन, रोली, और फूलों से भगवान शिव की पूजा करती हैं, जबकि देवी पार्वती को सिन्दूर और मेंहदी चढ़ाई जाती है।
  2. सोलह श्रृंगार: महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार करती हैं, जिसमें साड़ी, चूड़ी, बिंदी, काजल, मेंहदी, गहने आदि शामिल होते हैं। यह श्रृंगार सुहाग का प्रतीक होता है और महिलाओं के सौंदर्य को निखारता है।
  3. कथा और भजन: हरियाली तीज के दिन शिव-पार्वती की कथा सुनी और सुनाई जाती है। इसके अलावा, महिलाएं पारंपरिक तीज गीत गाती हैं और भजन करती हैं।
  4. झूला झूलना: हरियाली तीज पर झूला झूलने की परंपरा भी होती है। महिलाएं इस दिन सजी-धजी झूलों पर झूलती हैं और लोकगीत गाती हैं।

इन सभी अनुष्ठानों और परंपराओं के माध्यम से महिलाएं भगवान शिव और देवी पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

हरियाली तीज पर झूला झूलने का क्या महत्व है?

हरियाली तीज पर झूला झूलने की परंपरा का गहरा सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक महत्व है। इसे निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है:

1. प्रकृति के साथ जुड़ाव:

झूला झूलना हरियाली तीज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे प्रकृति के साथ जुड़ने का एक माध्यम माना जाता है। इस समय, चारों ओर हरियाली और ताजगी होती है, और झूला झूलकर महिलाएं प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेती हैं।

2. मन की प्रसन्नता:

झूला झूलने से मन में उत्साह और प्रसन्नता का संचार होता है। इसे एक प्रकार के आनंददायक क्रिया के रूप में देखा जाता है जो महिलाओं को खुशी और ताजगी प्रदान करता है।

3. पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व:

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती अपने मैके जाती थीं और झूला झूलने का आनंद लेती थीं। यह परंपरा उनके इस प्रसंग की याद दिलाती है और उनके प्रति भक्ति और सम्मान प्रकट करने का तरीका है।

4. सामाजिक मिलन:

झूला झूलने की परंपरा महिलाओं को एक साथ लाती है, जिससे वे आपस में मिलकर खुशियाँ बाँटती हैं। यह एक सामाजिक गतिविधि है जो महिलाओं के बीच के रिश्तों को मजबूत करती है।

5. संगीत और नृत्य:

झूला झूलने के साथ-साथ महिलाएं पारंपरिक तीज गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं। यह न केवल मनोरंजन का साधन है बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और उसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने का तरीका भी है।

कुल मिलाकर, हरियाली तीज पर झूला झूलना एक महत्वपूर्ण और हर्षोल्लासपूर्ण परंपरा है जो महिलाओं के जीवन में खुशियाँ और उमंग लाती है।

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